लेखनी कहानी -09-Mar-2023- पौराणिक कहानिया
बजरंगी-जो सबकी
गत होती, वही
हमारी भी होगी।
घंटे-भर तक
पंचायत हुई, पर
सूरदास के पास
कोई न गया।
साझे की सुई
ठेले पर लदती
है। तू चल,
मैं आता हूँ,
यही हुआ, किया।
फिर लोग अपने-अपने घर
चले गए। संधया
समय भैरों सूरदास
के पास गया।
सूरदास ने पूछा-आज क्या
हुआ?
भैरों-हुआ क्या,
घंटे-भर तक
बकवास हुई। फिर
लोग अपने-अपने
घर चले गए।
सूरदास-कुछ तय
न हुआ कि
क्या किया जाए?
भैरों-निकाले जाएँगे, इसके
सिवा और क्या
होगा। क्यों सूरे,
कोई न सुनेगा?
सूरदास-सुननेवाला भी वही
है, जो निकालनेवाला
है। तीसरा होता,
तब न सुनता।
भैरों-मेरी मरन
है। हजारों मन
लकड़ी है, कहाँ
ढोकर ले जाऊँगा?
कहाँ इतनी जमीन
मिलेगी कि फिर
टाल लगाऊँ?
सूरदास-सभी की
मरन है। बजरंगी
ही को इतनी
जमीन कहाँ मिली
जाती है कि
पंद्रह-बीस जानवर
भी रहें, आप
भी रहें। मिलेगी
भी तो इतना
किराया देना पड़ेगा
कि दिवाला निकल
जाएगा। देखो, मिठुआ आज
भी नहीं आया।
मुझे मालूम हो
जाए कि वह
बीमार है, तो
छिन-भर न
रुकूँ, कुत्तो की भाँति
दौड़ईँ, चाहे वह
मेरी बात भी
न पूछे। जिनके
लिए अपनी जिंदगी
खराब कर दो,
वे भी गाढ़े
समय पर मुँह
फेर लेते हैं।
भैरों-अच्छा, तुम बताओ,
तुम क्या करोगे,
तुमने भी कुछ
सोचा है?
सूरदास मेरी क्या
पूछते हो, जमीन
थी, वह निकल
ही गई; झोंपड़े
के बहुत मिलेंगे,
तो दो-चार
रुपये मिल जाएँगे।
मिले तो क्या,
और न मिले
तो क्या? जब
तक कोई न
बोलेगा, पड़ा रहूँगा।
कोई हाथ पकड़कर
निकाल देगा, बाहर
जा बैठूँगा। वहाँ
से उठा देगा,
फिर आ बैठूँगा।
जहाँ जन्म लिया
है, वहीं मरूँगा।
अपना, झोंपड़ा जीते-जी न
छोड़ा जाएगा। मरने
पर जो चाहे,
ले ले। बाप-दादों की जमीन
खो दी, अब
इतनी निसानी रह
गई है, इसे
न छोड़ईँगा। इसके
साथ ही आप
भी मर जाऊँगा।
भैरों-सूरे, इतना दम
तो यहाँ किसी
में नहीं।
सूरदास-इसी से
तो मैंने किसी
से कुछ कहा
ही नहीं। भला
सोचो, कितना अंधोर
है कि हम,
जो सत्तार पीढ़ियों
से यहाँ आबाद
हैं, निकाल दिए
जाएँ और दूसरे
यहाँ आकर बस
जाएँ। यह हमारा
घर है, किसी
के कहने से
नहीं छोड़ सकते।
जबरदस्ती जो चाहे,
निकाल दे, न्याय
से नहीं निकाल
सकता। तुम्हारे हाथ
में बल है,
तुम हमें मार
सकते हो। हमारे
हाथ में बल
होता; तो हम
तुम्हें मारते। यह तो
कोई इंसाफ नहीं
है। सरकार के
हाथ में मारने
का बल है,
हमारे हाथ में
और कोई बल
नहीं है, तो
मर जाने का
बल तो है!
भैरों ने जाकर
दूसरों से ये
बातें कहीं। जगधार
ने कहा-देखा,
यह सलाह है!
घर तो जाएगा
ही, जान भी
जाएगी।
ठाकुरदीन-यह सूरदास
का किया होगा।
आगे नाथ न
पीछे पगहा, मर
ही जाएगा, तो
क्या? यहाँ मर
जाएँ, तो बाल-बच्चों को किसके
सिर छोड़ें?